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जयपुर, राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (राजस्थान शाखा) के तत्वावधान में संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत अध्यक्ष की भूमिका के संबंध में शनिवार को विधानसभा में आयोजित सेमिनार के द्वितीय सत्र के दौरान वक्ताओं ने मुख्य रूप से दल-बदल राजनीति के विरोध में अपने विचार व्यक्त किए।
सेमिनार में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष श्री विश्वेस्वर हेगड़े कागेरी ने राजनीतिक दल-बदल की प्रवृत्ति पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि यह प्रवृत्ति सही नहीं है। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में व्यवस्था को नकारा नहीं जा सकता किंतु अपने स्वार्थवश दल बदलने वाले शक्स की राजनैतिक सदस्यता ही समाप्त कर देनी चाहिए।
सेमिनार में राज्य विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्री दीपेन्द्र सिंह शेखावत ने विधायिका और न्यायपालिका के आपसी संबंधों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका में न्यायपालिका का ज्यादा हस्तक्षेप उचित नहीं है। अध्यक्ष पर सभी पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक दल विश्वास करते हैं और इसी लिए अध्यक्ष को निष्पक्ष और निर्भीक होकर अपने निर्णय लेना चाहिए। 
सेमिनार के द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए उप नेता प्रतिपक्ष श्री राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि हमारी प्रतिबद्धता जनता के प्रति होती है।  दलीय व्यवस्था के अंतर्गत हम अपने दल के सिद्धांतों और उसके मेनिफेस्टो से जुड़े होते हैं और अपने दल के सिद्धांतों और नीतियों के आधार पर ही जनता से वोट मांगते हैं। इस स्थिति में जब कोई स्वार्थवश अपना दल बदलता है तो निश्चित तौर पर यह सही नहीं है। 
राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (राजस्थान शाखा) की कोषाध्यक्ष श्रीमती शकुंतला रावत ने सभी वक्ताओं को पौधा प्रदान कर उनका अभिनंदन किया एवं सत्र के समापन पर आभार व्यक्त किया। सरकारी मुख्य उप सचेतक श्री महेंद्र चौधरी ने कर्नाटक विधान सभा अध्यक्ष को स्मृति चिन्ह प्रदान किया।