











कोटा: कांग्रेस की बैठक में बवाल, शांति धारीवाल और प्रहलाद गुंजल के समर्थक आमने-सामने, नारेबाजी और धक्का-मुक्की से माहौल गरमाया
R.खबर ब्यूरो। राजस्थान के कोटा में रविवार (5 अक्टूबर) को कांग्रेस की संगठनात्मक बैठक हंगामे की भेंट चढ़ गई। बैठक के दौरान पूर्व मंत्री शांति धारीवाल और कांग्रेस नेता प्रहलाद गुंजल के समर्थक आमने-सामने आ गए, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया। शहर कांग्रेस कार्यालय में हुई इस बैठक में जमकर नारेबाजी, धक्का-मुक्की और शक्ति प्रदर्शन हुआ, जिसने पार्टी की अंदरूनी कलह को उजागर कर दिया।
यह बैठक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के संगठन सृजन अभियान के तहत आयोजित की गई थी। इसका उद्देश्य जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद के दावेदारों से आवेदन लेना और कार्यकर्ताओं का फीडबैक जुटाना था। तेलंगाना कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष जेट्टी कुसुमा कुमार को इस बैठक का पर्यवेक्षक बनाया गया था।
तनातनी से बिगड़ा माहौल:-
शुरुआत में बैठक शांतिपूर्वक चल रही थी, लेकिन धारीवाल और गुंजल समर्थकों के बीच अचानक नारेबाजी शुरू हो गई। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ जमकर आवाजें उठाईं और स्थिति धीरे-धीरे नियंत्रण से बाहर हो गई।
धक्का-मुक्की और हाथापाई तक पहुंचा विवाद:-
तनाव बढ़ने पर दोनों खेमों के बीच धक्का-मुक्की और हल्की हाथापाई तक की नौबत आ गई। स्थिति बिगड़ती देख शांति धारीवाल ने बैठक बीच में ही छोड़ दी और बाहर चले गए। इसके बाद महिला कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राखी गौतम के समर्थक भी नारेबाजी में शामिल हो गए, जिससे माहौल और गरमा गया।
पर्यवेक्षक असहज, पार्टी की फूट उजागर:-
हंगामे के दौरान पर्यवेक्षक जेट्टी कुसुमा कुमार ने हालात संभालने की कोशिश की, लेकिन वे भी इस उग्र माहौल में असहज नजर आए। पूरा कांग्रेस कार्यालय कुछ देर के लिए हंगामे के अखाड़े में तब्दील हो गया।
कार्यकर्ताओं की चिंता — चुनावों पर पड़ेगा असर:-
कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर इस तरह की गुटबाजी और आपसी टकराव जारी रहे, तो इसका सीधा असर आने वाले नगर निकाय और विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा। उनका मानना है कि आपसी मतभेद से संगठन कमजोर होगा और इसका फायदा विपक्ष को मिलेगा।
हालांकि, बाद में नेताओं ने बयान जारी कर कहा कि “पार्टी में सब कुछ सामान्य है” और मतभेद जल्द सुलझा लिए जाएंगे।
आंतरिक कलह बनी बड़ी चुनौती:-
कोटा में हुआ यह विवाद कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी और अंदरूनी खींचतान को एक बार फिर उजागर करता है। पार्टी नेतृत्व अब इस चुनौती से निपटने और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की कोशिश में जुटा है।
अगर समय रहते मतभेद नहीं सुलझाए गए, तो आगामी चुनावों में कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

