अब 16 सालों बाद भी किसानों की मांग जस की तस, फिर से उठने लगी आन्दोलन की सुगबुगाहट
खाजूवाला, इ.गा.न.प. के अंतिम छोर पर बसे खाजूवाला क्षेत्र में भी सिंचाई पानी की मांग को लेकर आंदोलन की सुगबुगाहट एक बार फिर से तेज हो गई है। 16 साल पहले 27 अक्टूबर 2004 को खाजूवाला, रावला व घड़साना क्षेत्र में सिंचाई पानी की मांग को लेकर एक बहुत बड़ा आंदोलन हुआ था। जो किसान आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस किसान आंदोलन ने सरकार तक को हिला दिया था। करीब 2 माह तक चले इस आंदोलन में खाजूवाला, रावला व घड़साना में 10 दिन तक कर्फ्यू भी लगा था। आज 16 साल बाद इस क्षेत्र में एक बार फिर किसानों को सिंचाई पानी की कमी हो रही है। बस फर्क इतना है कि उस समय सरकार भाजपा की थी और अब सरकार कांग्रेस की है। वर्तमान परिस्थिति में किसानों को पर्याप्त पानी होने के बावजूद भी तीन में से एक समूह पानी का रेग्यूलेशन बनाया गया है। जो कि मार्च तक यही चलेगा। जिसके खिलाफ किसान अब अपनी आवाज बुलन्द कर रहे है।
भारत कृषि प्रधान देश है और यहां किसानों को अपनी फसलों को को बचाने के लिए पानी की मांग को लेकर धरने प्रदर्शन समझो आम बात है। इस क्षेत्र के किसानों को प्रत्येक साल की नवंबर व दिसंबर में पानी की मांग के लिए आंदोलन भी झेलना पड़ता है। जिसमें कई बार राजनीतिक पार्टियों के नेता किसानों को गुमराह कर लेते हैं। लेकिन आज से 16 साल पहले 2004 में बिना कोई राजनीतिक पार्टी के सिर्फ किसानों के नेतृत्व में यह आंदोलन हुआ था। हालांकि उस समय कामरेडो का क्षेत्र में बोलबाला था और कामरेड की एक आवाज पर हजारों किसान इक_ा हो जाते थे। उस समय सिर्फ किसान, मजदूर और व्यापारी अपने पेट की रोजी रोटी के लिए सड़कों पर उतरा था। किसान मजदूर व्यापारी संघर्ष समिति के नेतृत्व में यह आंदोलन हुआ था और देखते ही देखते आंदोलन ने एक बड़ा रूप ले लिया। जिसमें 7 किसान सिंचाई पानी की मांग करते हुए शहीद भी हुए थे।
1990 के बाद 2000 तक इस क्षेत्र में कोटन की खूब पैदावार हुई। पंजाब हरियाणा से लोग यहां पर पहुंचने लगे। जमीनों के दाम आसमान छूने लगे, क्षेत्र का किसान विकसित होने लगा। इस क्षेत्र के किसान के पास पहली बार फसलों से अच्छी कमाई हुई थी। किसानों ने साधन जुटाए, घर बनाने शुरू किए, लेकिन सन 2000 के बाद रेगुलेशन बदलाव एक ऐसी अकाल छाया लेकर आया कि आज किसान कर्ज के बोझ तले दब गया है। किसानों की पीड़ा को कोई भी सुनने वाला नहीं है। किसान मजबूर होकर अपनी आवाज उठाने की कोशिश करता है लेकिन इस वक्त की हावी राजनीतिक पार्टियों के तले उसकी आवाज दबा दी जाती है। सिंचाई रेगुलेशन रबी फसल से पहले हनुमानगढ़ के चीफ इंजीनियर कार्यालय में तय होता है। इस रेगुलेशन मीटिंग में वही लोग शामिल होते हैं जो राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए विधायक होते हैं। सत्ता पक्ष का विधायक होने पर चुप्पी साध लेता है और विपक्ष का विधायक होने पर शोर-शराबे के बीच रेगुलेशन तय हो जाता है। यह राजनीतिक ड्रामा पिछले कई सालों से चल रहा है। अगर सरकार बीजेपी की होती है तो क्षेत्र में कांग्रेस के नेताओं के द्वारा सिंचाई पानी की मांग को लेकर आंदोलन की रणनीति बनाई जाती है अगर सरकार कांग्रेस की होती है तो बीजेपी के नेताओं के द्वारा किसानों को गुमराह करके दो-दो हाथ करने के लिए सरकार के सामने कर दिए जाते हैं। लेकिन वही ढ़ाक के तीन पात सिर्फ राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेकने के लिए इन किसानों को गुमराह कर रही है। अब फिर से किसानों की मांग को 2004 के किसान आन्दोलन की तरह उठाने की सुगफुगाट शुरू हो गई है। किसान नेताओं का कहना है कि रेगुलेशन में बदलाव कर हर हालत में चार में से दो समूह सिंचाई पानी लिया जाएगा।
किसान मजदूर व्यापारी संघर्ष समिति के प्रदेश प्रवक्ता महेंद्र तरड़ ने बताया कि किसानों के शहीदी दिवस के रूप में मंगलवार को शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देकर उन्हें याद किया गया। उन्होंने कहा कि रावला से मांगीलाल बिश्नोई, राजकुमार सिंधी, कालासिंह रायसिख, घड़साना से जेठाराम मेघवाल, हरबंससिंह, चंदूराम साहरण व खाजूवाला से हजूरसिंह इस आंदोलन में शहीद हुए थे। जिन्हें श्रद्धांजलि देकर याद किया गया। महेंद्र तरड़ ने कहा कि किसानों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा। श्रद्धांजलि सभा में पहुंचे किसानों ने कहा कि 4 में से 2 समुह चलाकर सिंचाई पानी दिया जाए नहीं तो हमारी फसलें बर्बाद हो जाएगी। किसान सोहन खोखर का कहना है कि अगर समय रहते सिचाई पानी का रेगुलेशन नहीं बदला तो 2004 के आंदोलन की पुनरावृति होगी। इसको लेकर भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में भी खाजूवाला में धरना प्रदर्शन हो चुका है। यह संघ पहले भी प्रशासन को चेतावनी दे चुका है कि अगर रेगुलेशन में बदलाव नहीं किया गया तो किसान चक्का जाम जैसे कदम उठाएंगे।