अंता उपचुनाव में BJP को बड़ा झटका: मोरपाल सुमन की हार के पीछे 5 बड़ी वजहें, नरेश मीणा तीसरे स्थान पर रहे

R.खबर ब्यूरो। राजस्थान की अंता विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद जैन भाया ने 15,594 मतों के अंतर से शानदार जीत दर्ज की। होम वोटिंग सहित 20 राउंड की मतगणना पूरी होने के बाद भाया को 69,462 वोट मिले, जबकि भाजपा उम्मीदवार मोरपाल सुमन को 53,868 वोट मिले। निर्दलीय नरेश मीणा ने 53,740 मत लेकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया। इस उपचुनाव में 925 मतदाताओं ने NOTA का विकल्प चुना।

यह हार हाड़ौती में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही भाजपा के लिए बड़ा झटका मानी जा रही है। यह सीट पूर्व भाजपा विधायक कंवर लाल मीणा की कोर्ट द्वारा आपराधिक सजा के बाद अयोग्यता के चलते रिक्त हुई थी। मतदान प्रतिशत 80% से अधिक दर्ज किया गया, जो जनता की सक्रियता और चुनाव के प्रति उत्साह को दर्शाता है।

भाजपा की हार की प्रमुख वजहें:-

  1. वोटों का विभाजन और त्रिकोणीय मुकाबला

कांग्रेस के बागी नरेश मीणा के चुनाव लड़ने से मुकाबला दोतरफा न रहकर त्रिकोणीय हो गया। एग्जिट पोल में उन्हें करीब 33% समर्थन मिलने का अनुमान था। उनके उम्मीदवार बनने से मीणा समुदाय के वोट बिखर गए, जो परंपरागत रूप से भाजपा के लिए फायदेमंद माने जाते थे। इस विभाजन ने भाजपा के विजय समीकरण को गहरा नुकसान पहुंचाया।

  1. पूर्व विधायक की अयोग्यता का असर

कंवर लाल मीणा को 2005 के मामले में सजा और अयोग्यता ने भाजपा पर नकारात्मक असर डाला। जनता में यह नाराजगी रही कि पार्टी ने ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया था जिसकी वजह से सीट खाली हुई और विकास कार्य ठप पड़े। कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बना कर भाजपा की छवि पर सवाल उठाए।

  1. मोरपाल सुमन की सीमित स्थानीय अपील

भाजपा ने सुमन को स्थानीय चेहरा बताकर मैदान में उतारा, लेकिन वे मतदाताओं में उम्मीद के अनुरूप पकड़ नहीं बना पाए। तीन बार विधायक रह चुके भाया की विकास छवि—सड़क, सिंचाई और क्षेत्रीय परियोजनाओं—ने उन्हें अधिक मजबूत विकल्प के रूप में पेश किया। सुमन का “स्थानीय बनाम बाहरी” वाला मुद्दा भी जनता पर खास असर नहीं डाल सका।

  1. कांग्रेस का आक्रामक और संगठित प्रचार

कांग्रेस ने अंतिम चरण में जोरदार प्रचार किया। पूर्व सीएम अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा, टीकाराम जूली और अशोक चांदना जैसे नेताओं ने रैलियां कीं। उन्होंने भाया के खिलाफ भाजपा के ‘राजनीतिक मामलों’ को खारिज किया और जातिगत समीकरण (गुर्जर-माली) को संतुलित रखा। भाजपा का फोकस माइक्रो-मैनेजमेंट पर फिसल गया, जबकि हाड़ौती में वोटर सेंटिमेंट कांग्रेस के पक्ष में शिफ्ट हो गया। वसुंधरा राजे की जमीन पर मेहनत के बावजूद कांग्रेस की एकजुटता भारी पड़ी

  1. स्थानीय मुद्दों पर असंतोष

बेरोजगारी, पेयजल संकट और किसान समस्याओं को लेकर स्थानीय स्तर पर असंतोष था। भजनलाल सरकार इन मुद्दों पर वोटरों को पूरी तरह आश्वस्त नहीं कर सकी। वहीं, नरेश मीणा अपने ‘आक्रामक’ नेता वाली छवि—देवली उपचुनाव के दौरान SDM थप्पड़ विवाद—के चलते युवाओं में लोकप्रिय रहे। भाजपा की आंतरिक मतभेदों की चर्चा भी जनता तक पहुंची। भाया के खिलाफ उठाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को मतदाताओं ने इस बार महत्व नहीं दिया।

अंता उपचुनाव का परिणाम भाजपा के लिए हाड़ौती में चेतावनी है। पार्टी को उम्मीदवार चयन, स्थानीय मुद्दों और संगठनात्मक एकजुटता पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। वहीं, कांग्रेस की जीत प्रमोद जैन भाया की व्यक्तिगत मजबूती और पार्टी की संगठित चुनावी रणनीति को रेखांकित करती है।