राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए केन्द्र सरकार लड़ाई

जयपुर, 17 साल पहले आज ही के दिन 2003 में राज्य में कांग्रेस सरकार ने 200 विधायकों का सर्वसम्मति से राजस्थानी भाषा को मान्यता देते हुए आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार को भेज दिया लेकिन केन्द्र सरकार इस पर आज तक कोई निर्णय नहीं ले सकी।

राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए लड़ने वाले युवाओं में इस बात की टीस है कि 10 करोड़ लोगों की मातृभाषा राजस्थानी को मान्यता देने में केन्द्र सरकार क्यों रुचि नहीं ले रही, जबकि यह भाषा की मान्यता की बात संसद में भी सैकड़ों बार उठ चुकी है।

1944 से चल रही राजस्थानी की मान्यता की मांग :-

राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग आज से नहीं आजादी से पहले से ही उठ रही है। देश को आजादी भले ही 1947 में मिली हो लेकिन राजस्थानी भाषा को मान्यता की मांग पहले से ही उठने लगी। सबसे पहले 1944 में दिनाजपुर सम्मेलन में राजस्थानी भाषा काे मान्यता देने की आवाज उठी जाे अब तक लगातार चल रही है।

नई शिक्षा नीति में भी पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाने की बात लेकिन बिना मान्यता के कैसे होगा संभव?

नई शिक्षा नीति में बच्चों को प्राइमरी शिक्षा मातृभाषा में देने की बात कही गई है लेकिन प्रदेश में यह संभव ही नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारे प्रदेश की मातृभाषा राजस्थानी तो है लेकिन केन्द्र सरकार ने अभी तक इसे मान्यता नहीं दी है। राजस्थानी मोट्यार परिषद, मायड़ भाषा छात्र मोर्चा और अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने कहा, जब तक सरकार राजस्थानी भाषा की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जाता है जब तक स्कूलों में बच्चों को कैसे प्रारंभिक शिक्षा दे सकते हैं।