











चुनावों में AI का दुरुपयोग रोकने के लिए चुनाव आयोग सख्त, राजनीतिक दलों के लिए नई गाइडलाइन जारी, पढ़े पूरी खबर
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने चुनावी अभियानों में एआई (Artificial Intelligence) और डिजिटल रूप से संशोधित सामग्री के बढ़ते दुरुपयोग को रोकने के लिए बड़ी कार्रवाई की है। आयोग ने सभी राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और प्रचार प्रतिनिधियों के लिए नई गाइडलाइन जारी की है।
आयोग का कहना है कि इस तरह की तकनीकी रूप से तैयार या संशोधित सामग्री मतदाताओं को भ्रमित कर सकती है और इससे चुनावी अखंडता, निष्पक्षता और मतदाता विश्वास पर असर पड़ सकता है। इसी खतरे को देखते हुए आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए यह दिशा-निर्देश लागू किए हैं।
गाइडलाइन के मुख्य बिंदु:-
- AI या संशोधित सामग्री पर स्पष्ट लेबलिंग अनिवार्य
- अब किसी भी एआई-निर्मित छवि, ऑडियो या वीडियो पर यह स्पष्ट रूप से दर्शाना अनिवार्य होगा कि यह कृत्रिम या डिजिटल रूप से संशोधित है।
- दृश्य सामग्री में लेबल कम से कम 10% दृश्य क्षेत्र को कवर करेगा।
- वीडियो में यह ऊपरी हिस्से पर प्रदर्शित होना जरूरी होगा।
- ऑडियो में लेबल शुरुआती 10% अवधि तक सुनाई देना आवश्यक है।
सामग्री निर्माता की पहचान अनिवार्य:-
एआई-जनित हर सामग्री में उसे तैयार करने वाली जिम्मेदार इकाई का नाम स्पष्ट रूप से दिखाना होगा — या तो मेटाडाटा में या कैप्शन के रूप में।
भ्रामक या फर्जी सामग्री पर पूर्ण प्रतिबंध:-
अब चुनावी प्रचार में ऐसी कोई भी सामग्री साझा नहीं की जा सकेगी, जो — किसी व्यक्ति की पहचान, आवाज या रूप को बिना अनुमति के तोड़-मरोड़ कर पेश करे या फिर मतदाताओं को गुमराह करने की संभावना रखती हो।
3 घंटे में हटानी होगी भ्रामक सामग्री:-
अगर किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर एआई से निर्मित या भ्रामक सामग्री पाई जाती है, तो उसे रिपोर्ट या संज्ञान में आने के 3 घंटे के भीतर हटाना अनिवार्य होगा।
AI सामग्री का रिकॉर्ड रखना भी जरूरी:-
हर राजनीतिक दल और प्रचार एजेंसी को अब अपने प्लेटफॉर्म पर उपयोग की गई AI-जनित या डिजिटल रूप से संशोधित सामग्री का अभिलेख (record) रखना होगा, ताकि जरूरत पड़ने पर जांच एजेंसियों को यह उपलब्ध कराया जा सके।
आयोग का कहना है कि इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य तकनीक का जिम्मेदार उपयोग सुनिश्चित करना और चुनावी पारदर्शिता की रक्षा करना है, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर किसी भी तरह का कृत्रिम प्रभाव न पड़े।

