आखिरकार दोनों नेताओं का हो ही गया आमना सामना : लोस चुनाव बीकानेर में भाजपा के अर्जुनराम व कांग्रेस के गोविंदराम के बीच होगा चुनावी रण

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भाजपा ने जीत के लिए सांसद अर्जुनराम का लगातार कद बढ़ाया, तो कांग्रेस ने भी टक्कर देने के लिये गोविंदराम को उतारा चुनाव मैदान मे

चुनावी रण : अर्जुन का रथ रोकने को कांग्रेस ने गोविंद को उतारा, दो दिग्गजों के चुनाव में उतरने से लोस चुनाव में क्या बढ़ेगा पोलिंग परसेंट

R. खबर ब्यूरो, कांग्रेस ने लगातार चौथी बार बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बदला है। इस बार दलित नेता और पूर्व मंत्री गोविंदराम मेघवाल को पार्टी ने लोकसभा उम्मीदवार बनाया है। तो वही भाजपा पहले से लोकसभा प्रत्याशी अर्जुनराम मेघवाल को बड़े एससी लीडर के रूप में स्थापित कर रखा है।

अर्जुनराम मेघवाल और गोविंदराम मेघवाल के बीच पहले से बड़ा एससी लीडर बनने की होड़ है। भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर अर्जुनराम मेघवाल को एससी लीडर के रूप में मजबूत किया है। गोविंद मेघवाल छात्र आंदोलन से ही एससी लीडरशिप करते आए हैं। वे आज भी जिले की प्रत्येक विधानसभा सीटों पर एससी वोटर्स पर खासा दखल रखते हैं। यही वजह है कि इस बार का चुनाव रोमांचक होगा। गोविंद मेघवाल नोखा से भाजपा के विधायक रह चुके हैं। खाजूवाला में वे 2008 से राजनीति कर रहे हैं। वहां से विधायक रहे। कोलायत में उनकी खासी पहचान है। आक्रामक राजनीति करते हैं। बयानों से अक्सर चर्चा में रहते हैं। इससे उन्हें कई बार नुकसान भी उठाना पड़ा है। मास्टर भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद वे पश्चिमी राजस्थान के लिए कांग्रेस के बड़े एससी लीडर साबित हुए। इधर अर्जुनराम मेघवाल ने कांग्रेस के तीन अलग-अलग उम्मीदवारों को लगातार हराकर अपना लोहा मनवाया। इसीलिए जैसे कांग्रेस ने लगातार चौथी बार उम्मीदवार बदला ठीक उसके उलट भाजपा ने लगातार चौथी बार अर्जुनराम मेघवाल पर ही दांव खेला। अर्जुन मेघवाल आक्रामक नहीं सधी राजनीति करते हैं। लगातार चुनाव जीते तो केन्द्र में बतौर मंत्री प्रतिनिधित्व किया। इस बार का चुनाव एससी लीडरशिप के दो बड़े धुरंधरों के बीच होगा। ऐसे में अब निर्णायक ओबीसी और सामान्य जाति के वोटर होंगे।

बीकानेर में औसत मतदान:
एससी के दो दिग्गजों के बीच मुकाबला होने से इस बार मतदान प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। बीकानेर के लोकसभा चुनाव में वोटिंग का ट्रेंड वैसे भी ज्यादा उत्साहजनक नहीं रहा अब तक हुए 17 चुनावों में महज दो बार यहां 60 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई। एक बार 1998 में 63.32 फीसदी वोटिंग हुई तब कांग्रेस के बलराम जाखड़ जीते। वर्ष 2004 में मतदान प्रतिशत ने 61.59 प्रतिशत का आंकड़ा छुआ तो भाजपा प्रत्याशी फिल्म स्टार धर्मेन्द्र देओल ने चुनावी बाजी मारी। इससे इतर सबसे कम 41.25 फीसदी वोटिंग वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में हुई। इतनी कम वोटिंग के बाद भी भाजपा के अर्जुनराम मेघवाल पहला चुनाव 19575 वोटों से जीत गए। अब तक हुए चुनावों में वोटिंग के आधार पर औसत निकाली जाए तो यहां लगभग 52.78 फीसदी वोटिंग होती है।