अब पूगल में नए कारनामे का हुआ भंडाफोड़, भूमि घोटाले में एसडीएम से लेकर पटवारी तक का गठजोड़ : जिला कलक्टर ने सात प पटवारी व गिरदावरों को किया निलम्बित
R. खबर, ब्यूरो। बीकानेर जिले गलत तरीके से भूमि आवंटन का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है छत्तरगढ़ के बाद अब पूगल उपखण्ड में हजारों बीघा सरकारी भूमि के फर्जी आवंटन का भंडाफोड़ हुआ है। इसमें एसडीएम से लेकर पटवारी तक का भूमाफिया गठजोड़ सामने आया है। जिला प्रशासन की ओर से गठित जांच कमेटी ने रिपोर्ट में इसका खुलासा किया हैं। इसके बाद जिला कलक्टर नम्रता वृष्णि ने सोमवार को पूगल तहसील के सात कार्मिकों को निलम्बित कर दिया है। इनमें चार पटवारी, एक कानूनगो, 2 गिरदावर शामिल है। साथ ही आरएएस व तहसीलदार के खिलाफ कार्रवाई के लिए चार्जशीट तैयार कर सरकार को कार्रवाई के लिए भेजी गई है।
जिला कलक्टर नम्रता वृष्णि ने बताया कि पिछले दस साल के दौरान पूगल उपखण्ड क्षेत्र में भूमि आवंटन के मामलों की जांच के लिए कमेटी गठित कर जांच कराई गई। इसमें भूमि का गलत तरीके से आवंटन और इंतकाल दर्ज करना सामने आया है।
जांच रिपोर्ट मिलते ही मामले में दोषी पटवारी, गिरदावर और कानूनगो को निलम्बित कर दिया है। साथ ही चार्जशीट जारी की है। आरएएस व आरटीएस स्तर के अधिकारियों से जुड़े मामलों की रिपोर्ट सरकार को भेज रहे है।
इन कार्मिकों पर कार्रवाई :
पूगल तहसील में कार्यरत कानूनगो भंवरलाल, गिरदावर जयसिंह व इकबाल सिंह, पटवारी मांगीलाल, लूणाराम, विकास पूनिया, राजेन्द्र स्वामी को निलम्बित कर चार्जशीट जारी की गई है। पूगल उपखण्ड में पदस्थापित रहे तीन नायब तहसीलदार, चार तहसीलदार व दो एसडीएम की लिप्तता उजागर हुई है।
छत्तरगढ़ के बाद पूगल में घोटाला उजागर :
जिले में रकबाराज पड़ी लाखों बीघा जमीनों की कई साल से फर्जीवाड़ा कर बंदरबांट का खेल चल रहा है। बीते पांच साल के दौरान छत्तरगढ़ में फर्जी आवंटन पत्रों से 6 हजार 125 बीघा भूमि का आवंटन करने का मामला खुल चुका है। इसमें तहसीलदार से लेकर पटवारी स्तर तक के 17 कार्मिकों की लिप्तता उजागर होने पर उनके खिलाफ पुलिस थाना में मामला दर्ज कराया जा चुका है। साथ ही दोषी कार्मिकों को निलम्बित भी कर दिया गया है। भूमि आवंटन घोटाले को कार्मिकों छत्तरगढ़ की तर्ज पर ही पूगल में अंजाम दिया है। जिला प्रशासन के पास जांच कमेटी की रिपोर्ट में सैकड़ों इंतकाल और मुरब्बा नम्बर, खसरा नम्बर की सूची बनाई गई है। यह पूरी जमीन 20 हजार बीघा होने का अनुमान है। हालांकि प्रशासन अभी जमीन के कुल रकबा की गिनती करवा रहा है।
जिप्सम माफिया का कारनामा :
सूत्रों के मुताबिक पूगल और खाजूवाला उपखण्ड में सरकारी भूमि में जिप्सम के भंडार है। जिप्सम माफिया अवैध रूप से खनन तो करता ही है। साथ ही फर्जीवाड़ा कर ऐसी जमीनों को हथियाने के लिए सक्रिय है। जिप्सम माफिया ने हजारों बीघा भूमि के इस फर्जीवाड़ा को अफसरों और जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर अंजाम दिया है। अभी पूगल उपखण्ड के प्रकरण सामने आए है। खाजूवाला में वनभूमि का एक प्रकरण उजागर हो चुका है। शेष को लेकर अभी जांच की जानी शेष है।

सोलर और खनन के लिए खेल :
जिले में हजारों हेक्टेयर भूमि रकबाराज पड़ी है। इसके साथ ही वर्ष 1971, 1984 और इसके बाद उपनिवेशन विभाग की ओर से किए आवंटन पर काश्तकार काबिज है। एक दशक पहले तक यहां जमीनों के भाव बहुत कम थे। जिप्सम, बजरी और व्हाइट क्ले वाली भूमि के ही खरीददार घूमते थे। बीते एक दशक के दौरान सोलर कम्पनियों ने यहां प्लांट लगाने के लिए 15 20 हजार रुपए प्रति बीघा सालाना ठेके पर जमीनों को लेना शुरू कर दिया। इससे जमीनों के भाव 15 से 20 लाख रुपए प्रति मुरब्बा तक पहुंच गए। अवैध खनन माफिया ने भी यहां जड़े जमा ली है।
खाजूवाला क्षेत्र में 74 बीघा वनभूमि को रिकॉर्ड से ही कर दिया गायब
बीएसएफ की चौकियों के बदले वन विभाग को मिली भूमि को भी नहीं छोड़ा :
भूमाफिया ने बॉर्डर एरिया में भी राजस्व विभाग के तंत्र में सेंध लगाकर जमीनों का बड़ा हेर-फेर किया है। पड़ताल में एक बेहद संवेदनशील मामला पकड़ में आया है। इसमें वन विभाग की भूमि पर बीएसएफ की चौकियां बनने के बाद उसके बदले मिली जमीन को रिकॉर्ड से गायब किया गया है। यह 74 बीघा जमीन वन विभाग के नाम दर्ज होने के बाद इसका नोटिफिकेशन जारी होना था। इससे पहले ही जमाबंदी से वन विभाग का नाम ही गायब कर दिया गया।
छत्तरगढ़ में अब तक 7 हजार 325 बीघा सरकारी अराजीराज और वनभूमि का फर्जी आवंटन पत्र और राजस्व रिकॉर्ड में गैर कानूनी तरीके से नामांतरण का खुलासा हो चुका है। ताजा प्रकरण खाजूवाला तहसील के गांव 11 एसएसएम के 74 बीघा रकबा का है। यह जमीन केन्द्र सरकार की अनुशंसा पर जिला कलक्टर और उपनिवेशन विभाग ने वर्ष 2020 में वन विभाग को आवंटित की थी। अब वन विभाग ने इस भूमि पर पौधारोपण के लिए अनक्लासिफाइड श्रेणी से प्रोटेक्ट फॉरेस्ट लैंड श्रेणी में हस्तांतरित करवाने की प्रक्रिया शुरू की, तब खुलासा हुआ कि राजस्व रिकॉर्ड में वन विभाग का नाम ही गायब है।
क्या कहता है नियम :
नियमों के मुताबिक वन विभाग की भूमि का अन्य किसी प्रयोजनार्थ केन्द्र सरकार की अनुमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता। ऐसे में बीएसएफ ने वन विभाग के अधिकारियों के साथ बातचीत कर इस मामले को केन्द्र सरकार को हस्तांतरित किया। केन्द्र सरकार ने चौकियों के लिए काम ली वनभूमि पर पौधरोपण करने सहित कुछ शर्तों के साथ बीएसएफ को उपयोग के लिए रखने की सैद्धांतिक स्वीकृति दे दी। हालांकि भूमि का टाइटल वन विभाग का ही रखा।
बीएसएफ की सात चौकियों के बदले मिली थी भूमि :
भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर पर तारबंदी के बाद सीमा के नजदीक बीएसएफ की सात चौकियां वनभूमि पर बनी हैं। बाद में बीएसएफ की बीओपी और चौकियों के भवन का निर्माण किया गया। तब सरकारी भूमि मानकर उसे बीएसएफ ने अपने काम में लेना शुरू कर दिया, लेकिन बाद में पता चला कि यह भूमि वन विभाग की है।
जिला कलक्टर ने दी थी वन विभाग को भूमि :
केन्द्र सरकार ने साथ ही बीएसएफ के काम आने वाली भूमि से दो गुणा भूमि वन विभाग को खरीदकर देने के लिए जिला प्रशासन को अधिकृत किया। जिला कलक्टर और उपनिवेशन विभाग ने आपसी सामंजस्य से चक 11 एसएसएम में अराजीराज भूमि 11 सितम्बर 2008 को वन विभाग को आवंटित कर दी। वन विभाग को पौधरोपण के लिए भी राशि का आवंटन किया गया। अब वन विभाग ने भूमि का रिकॉर्ड खंगाला, तो पता चला कि भूमि राजस्व रिकॉर्ड में है ही नहीं।
तहसीलदार चुप, नही दे रहे जानकारी :
जमीनों के फर्जीवाड़ा की आशंका के बाद वन विभाग के उप वन संरक्षक वीरभद्र मिश्र ने तहसीलदार छत्तरगढ़, पूगल, खाजूवाला को 29 मार्च को एक पत्र भेजकर वन विभाग की भूमि के राजस्व रिकॉर्ड में बदले गए नामांतरण की जानकारी मांगी। परन्तु डेढ़ महीना बीत जाने के बावजूद तहसीलदारों ने इसकी जानकारी वन विभाग को नहीं दी है।
वन विभाग ने मांगी यह जानकारी :
वन विभाग ने तहसीलदार कार्यालय से उन जमीनों की जानकारी मांगी जो वन विभाग के नाम थी और नामांतरण कर अन्य के नाम चढ़ाई गई। जमीन के खसरा नम्बर, मुरब्बा नम्बर, नामांतरण दिनांक आदि की जानकारी मांगी। साथ ही उन जमीनों की जानकारी मांगी जिन्हें उपनिवेशन विभाग ने वन विभाग को आवंटित कर दिया, लेकिन वन विभाग के नाम अमलदराज कराना शेष है। ऐसी भूमि का किसी के नाम इंतकाल दर्ज किया है, तो उसकी जानकारी चाही गई।
हटाया है वन विभाग का नाम :
खाजूवाला तहसील में आवंटित जमीन वर्ष 2020 तक वन विभाग के नाम इंतकाल में दर्ज थी। इसके बाद कब वन विभाग का नाम हटाया गया, इसके कागजात जुटा रहे है। विभाग ने इस भूमि पर पौधारोपण कार्य कराना है। भूमि वापस वन विभाग के नाम दर्ज कराने के लिए जिला प्रशासन को अवगत करावा रहे है।
योगेन्द्र सिंह राठौड़, वन अधिकारी आईजीएनपी स्टेज प्रथम।