शहीद रतनलाल की विदाई; 2 दिन बाद भी बेटे की मौत से अनजान मां, बेसुध पत्नी बोली- उनके आने पर ही खाऊंगी खाना
हैड कांस्टेबल रतनलाल की 70 वर्षीय मां 2 दिन बाद भी इस बात से अंजान है कि उनका बेटा नहीं रहा। जबकि गांव में सन्नाटा पसरा हुआ तो ग्रामीण बेटे के लिए धरने पर बैठे हैं।
1998 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भर्ती होने वाले रतनलाल को पहली बार में ही राबर्ट वाड्रा की सिक्योरिटी में लगाया गया। दो साल पहले ही हैड कांस्टेबल के पद पर इनकी पदोन्नति हुई।
दिल्ली के बुराडी में रहता था परिवार
रतनलाल मूल रुप से राजस्थान के सीकर के रहने वाले थे। उनका परिवार बुराड़ी में अमृत विहार की गली नंबर 8 में रहता था। उनका एक छोटा भाई दिनेश गांव में रहता है और एक भाई मनोज कर्नाटक के बेंगलुरु में नौकरी करता है।
हैड कांस्टेबल रतनलाल की 70 वर्षीय मां 2 दिन बाद भी इस बात से अंजान है कि उनका बेटा नहीं रहा। जबकि गांव में सन्नाटा पसरा हुआ तो ग्रामीण बेटे के लिए धरने पर बैठे हैं।
दिल्ली पुलिस में 1998 में हुए थे भर्ती
रतनलाल 1998 में दिल्ली पुलिस में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे। आखिरी वक्त में वे एसीपी गोकुलपुरी ऑफिस में तैनात थे।
रतनलाल को पैतृक गांव सीकर में दी गई अंतिम विदाई, परिवार ने मांगा शहीद का दर्जा
दिल्ली पुलिस के हवलदार रतनलाल उपद्रवियों की हिंसा का शिकार हो गए थे। इसकी खबर उनके परिवार को टीवी चैनलों के जरिये मिली। जब उनकी पत्नी पूनम को इस बात की जानकारी लगी तो उन्हें ऐसा सदमा लगा कि वे बेहोश हो गईं।
सपूत की पत्नी को अमित शाह का पत्र- आपके पति बहुत बहादुर थे।
दिल्ली पुलिस के हैड कांस्टेबल रतनलाल को बुधवार को अंतिम विदाई दी गई।