आज पढ़े अनसुनी कहानी: भगतसिंह के साथ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले राजस्थान के विशंभर दयाल शर्मा की


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(23 मार्च) भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरु ने देश के लिए दी शहादत

R.खबर, ब्यूरो। 23 मार्च भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत का दिन है। भगत सिंह का राजस्थान से भी खास रिश्ता रहा है। सबलपुरा के एक 93 वर्षीय हजारी प्रसाद शर्मा ने बताया कि अलवर सबलपुर के विशंभर दयाल और भगत सिंह-चंद्रशेखर आजाद के जीवन की कुछ कड़ियां आपस में कुछ इस कदर जुड़ी हैं कि इनकी कोई कहानी उनके बिना अधूरी है। भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद सबलपुरा आए, तब विशंभर दयाल के साथ उनके घर में रहे। उनसे गोलियां चलाना और बम बनाना सीखा।

क्रांतिकारी विशंभर दयाल शर्मा की कहानी:-

विशंभर दयाल शर्मा इसी सबलपुरा मोहल्ले में पैदा में हुए थे। यह इलाका तब घना जंगल हुआ करता था। दयाल अविवाहित थे। उनके बाद उनके घर, जमीन पर दूसरे लोगों ने कब्जा कर लिया। विशंभर दयाल फरारी के दौरान भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद सबलपुरा मोहल्ला के घने जंगलों में मिलते थे। दयाल को बम बनाने में महारत हासिल था। एक बार बम बनाने के दौरान फटने से घर का छज्जा भी गिर गया था।

क्रांति के लिए डाली थी डकैती:-

विशंभर के चाचा गाड़ोदिया स्टोर, दिल्ली में नौकरी करते थे। क्रांतिकारी दल को आर्थिक समस्या से निजात दिलाने और भगत सिंह को अंग्रेजों की कैद से छुड़ाने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने विशंभर के साथ मिलकर इसी गाड़ोदिया स्टोर में डकैती डाली।

अंग्रेजों को इसकी भनक लगी तो विशंभर के भाई भोला को तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया, लेकिन उन्होंने विशंभर का पता नहीं बताया।

विशंभर को पिस्तल चंद्रशेखर आजाद ने दी थी:-

राजस्थान स्वर्ण जयंती समारोह समिति के निर्देशन में प्रकाशित स्वतंत्रता के अमर पुरोधा विशंभर दयाल पुस्तक के लेखक रामानन्द राठी ने भी कई प्रसंगों का हवाला दिया है।

वे लिखते हैं कि चंद्रशेखर आजाद ने 0.38 बोर की एक काले रंग की पिस्टल विशंभर दयाल शर्मा को दी थी। इसमें मैनुअल कैबिनेट था, जो हर बार फायर करने के बाद लोड करनी पड़ती थी।

शिक्षण संस्थानों के जरिए क्रांतिकारियों का होता था चयन:-

रामानन्द राठी ने बताया कि क्रांतिकारियों में भगत सिंह का बहुत सम्मान था। उनके विचारों से युवा सर्वाधिक प्रभावित थे। लिहाजा, इन्हीं शिक्षण संस्थानों के जरिए क्रांतिकारियों का चयन होता था। वह बताते हैं कि शाहपुरा (भीलवाड़ा) निवासी केसर सिंह बारहठ, खरवा ठाकुर राव गोपाल सिंह, जयपुर के अर्जुन लाल सेठी और ब्यावर के सेठ दामोदर दास राठी इस काम में सर्वाधिक सक्रिय रहे।

राजस्थान में इन्होंने अभिनव भारत समिति क्रांतिकारी संगठन की शाखा स्थापित की। इस संस्था द्वारा भर्ती किए गए युवकों को अर्जुन लाल सेठी द्वारा जयपुर के वर्धमान विद्यालय में प्रशिक्षित किया जाता था। यहां युवकों को क्रांति का मकसद समझाया जाता। देश पर मर मिटने का जज्बा भरा जाता था। कई मौके पर इसके लिए भगत-आजाद और उनके समकालीन क्रांतिकारियों की कहानियां भी सुनाई जाती। यहां से प्रशिक्षित हुए युवक क्रांतिकारी रासबिहारी बोस के विश्वसनीय अमीरचंद के पास भेजे जाते थे।

अजमेर के जंगलों में क्रांतिकारियों को सिखाई गई थी फायरिंग:-

भगत सिंह को लाहौर जेल से छुड़ाने के लिए विशंभर दयाल ने मदनगोपाल को अजमेर के जंगलों में शूटिंग की ट्रेनिंग दी थी। इसी दौरान बम परीक्षण के वक्त क्रांतिकारी भगवतीचरण की मौत हो गई और सुखदेव राज गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इसके चलते अजमेर से मदनगोपाल को योजना में शामिल किया गया था, लेकिन मदनगोपाल को रिवाल्वर चलाना नहीं आता था। भगत सिंह को छुडाने के प्रयास में क्रांतिकारी दल के बहुत रुपए खर्च हो गए, लेकिन  उनको छुड़ाने का प्रयास सफल नहीं हुआ। क्रांतिकारी दल के द्वारा गाड़ोदिया स्टोर पर डकैती के मामले ने तूल पकड़ लिया। ब्रिटिश पुलिस ने क्रांतिकारी कैलाशपति को 1930 में सीताराम बाजार से गिरफ्तार कर लिया।

वह चंद्रशेखर आजाद समेत अन्य प्रमुख क्रांतिकारी की गतिविधियों से वाकिफ थे और दिल्ली प्रांत के संयोजक थे। पुलिस की यातनाओं के सामने कैलाशपति ज्यादा देर तक नहीं टिक पाए। उसने क्रांतिकारियों की योजना और ठिकानों के बारे में बता दिया। बताए गए ठिकानों से बड़ी संख्या में क्रांतिकारी गिरफ्तार हुए और कई मारे गए।

सीमा पार से आते थे क्रांतिकारियों के लिए हथियार:-

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पेशावर में भी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (एएचएसआरए) की शाखा थी। यह शाखा पंजाब के संगठन के अधीन थी। भगत सिंह की मदद से यहां से हथियार आते थे।

वायसराय पर फेंका था बम:-

विशंभर दयाल ने 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली के चांदनी चौक में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका था। वायसराय के सिर पर चोट आई और बॉडीगार्ड की मौत हो गई। वायसराय पर बम फेंकने के 19 साल बाद तक विशंभर दयाल फरार रहे। इस दौरान उन्होंने भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी जॉइन की और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।

19 साल की फरारी के बाद मुठभेड़, खुद का पेट फाड़ा:-

विशंभर दयाल शर्मा ब्रिटिशर्स को सबक सिखाने की तैयारी कर रहे थे। 19 साल से पुलिस को चकमा दे रहे इस क्रांतिकारी को मुखबिर की सूचना पर पुलिस की टुकड़ी ने घेर लिया। दोनों तरफ से फायरिंग हुई। विशंभर दयाल ने हथियार बंद टुकड़ी के पसीने छुड़ा दिए। इस दौरान एक गोली पेट और दूसरी जांघ को जख्मी करती हुई निकल गई। जख्मी हालात में उन्हें पकड़ लिया गया। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव फांसी दे दी गई। इधर, विशंभर दयाल पर भी यातानाओं का दौर जारी था।

22 अप्रैल 1931 को विशंभर दयाल ने पेट-सीने में लगे जख्मों के टांकों को फाड़ लिया और वे भी भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और चंद्रशेखर आजाद की राह पर चले गए।