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विज्ञापन जगत के बेताज बादशाह पीयूष पांडे का 70 वर्ष की आयु में निधन

भारतीय विज्ञापन जगत की एक अमूल्य आवाज और क्रांतिकारी विचारक पीयूष पांडे का शुक्रवार को 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। चार दशकों से अधिक समय तक ओगिल्वी इंडिया का चेहरा रहे पांडे ने अपनी रचनात्मकता, गहरी समझ और भारतीय उपभोक्ता की नब्ज को भांपने की कला से विज्ञापन की दुनिया को नया आयाम दिया। उनकी विशिष्ट मूंछें, गूंजती हंसी और देसी भाषा में जादू बुनने की कला ने उन्हें अद्वितीय बनाया।

जयपुर से शुरू हुआ रचनात्मक सफर:-

राजस्थान की राजधानी जयपुर में जन्मे पांडे का बचपन कला और रचनात्मकता से भरे माहौल में बीता। उनके भाई प्रसून पांडे फिल्म निर्देशक और बहन इला अरुण गायिका व अभिनेत्री के रूप में ख्यातिप्राप्त हैं। पीयूष ने सेंट जेवियर्स स्कूल से शिक्षा प्राप्त की और युवावस्था में रणजी ट्रॉफी क्रिकेट टीम के लिए भी खेले। हालांकि, क्रिकेट का सफर उन्हें विज्ञापन की दुनिया तक ले गया।

विज्ञापन जगत में क्रांति:-

1982 में ओगिल्वी इंडिया से जुड़ने के बाद पांडे ने भारतीयता और भावनाओं को विज्ञापनों का केंद्र बनाया। उनके बनाए गए कैचलाइनें, जैसे- “चल मेरी लूना” और “क्या स्वाद है जिंदगी में” लोगों की जुबान पर छा गए। उन्होंने रोजमर्रा की देसी भाषा में नए और यादगार नारे गढ़े, जो आज भी लोकप्रिय हैं।

राजनीति में भी रचनात्मक छाप:-

विज्ञापन के अलावा पांडे ने राजनीति में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का चर्चित नारा “अबकी बार मोदी सरकार” उनके दिमाग की उपज था, जिसने देशभर में गूंजा।

विरासत आज भी जीवित:-

पीयूष पांडे ने विज्ञापन जगत के साथ-साथ युवा रचनाकारों की पीढ़ी को भी प्रेरित किया। 2018 में उन्हें और उनके भाई प्रसून को Cannes Lions का प्रतिष्ठित St. Marks Award मिला। 2023 में उन्होंने ओगिल्वी इंडिया के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर सलाहकार की भूमिका संभाली। उनकी रचनात्मक विरासत आज भी जीवित है।