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सफलता का मूल मंत्र है मेहनत, अगर आप लक्ष्य को ध्यान में रखकर मेहनत करेंगे तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता-देवल

रितेश यादव
खाजूवाला, कहते है शिक्षा एक गहना है उसे किसी ने पा लिया तो वह अपने जीवन को बड़े सुन्दर ढ़ंग से जी सकता है। वहीं शिक्षा के बारे में कहा जाता है शिक्षा शेरनी का दुग्ध है जो इसे पीयेगा वह अवश्य ही दहाड़ेगा। ऐसा ही भारत-पाक अन्र्तराष्ट्रीय सीमा पर बसे गाँव आनन्दगढ़ का एक छोटा बच्चा जिसने शिक्षा का महत्व जाना पहचाना तथा शिक्षा पर निर्भर रहा। जो आज इस क्षेत्र के लिए गौरव की बात है हम बात कर रहे है आनन्दगढ़ के मूल निवासी के.डी.देवल पूरा नाम किशनदान देवल की। जो वर्तमान में शिक्षा व अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत आर्मेनिया व जोर्जिया के भारतीय राजूदत के पद पर आसीन है। देवल के बारे में क्षेत्र में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है लेकिन पिछले दिनों जब देवल खाजूवाला व अपने गाँव आए तो उनकी जानकारी क्षेत्र के लोगों को मिली। जिसपर आनन्दगढ़ के ग्रामीणों सहित सरपंच करण पूनियां, मदनलाल पूनियां व आस-पास के ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया। यहां उनसे विशेष वार्ता कर उनके बारे में जाना तथा उनके द्वारा किए गए परिश्रम के बारे में भी बात की।

कौन है के.डी.देवल
भारत-पाक अन्र्तराष्ट्रीय सीमा के कस्बे खाजूवाला पंचायत समिति के अन्र्तगत ग्राम पंचायत आनन्दगढ़ गाँव के है के.डी.देवल। देवल मूल निवासी से आनन्दगढ़ के है। यहां उनके परिवार के अन्य सदस्य रहते है। उनके परिवार देवल सहित 5 भाई है तथा चाचा और ताऊ के परिवार के लोग यहां रहते है। के.डी.देवल वर्तमान में जोर्जिया व अर्मेनिया के भारतीय राजदूत के पद पर आसीन है। उनके माता-पिता सन 1982 में बाड़मेर के गाँव बालेवा तहसील शिव से पलायन करके आनन्दगढ़ आए थे। उनका बचपन आनन्दगढ़ व शिक्षा के लिए शुरूआत खाजूवाला में हुई। वह चारण परिवार से आते है।

गाँव से ही कि शिक्षा कि शरुआत
देवल ने बताया कि उनका जन्म 1979 में बाड़मेर के गाँव बालेवा में हुआ। वह अपने माता पिता के साथ 1982 में खाजूवाला के गाँव आनन्दगढ़ में आकर रहने लगे। माता केशर देवी व पिता लक्ष्मणदान देवल बहुत गरीब थे तथा खेती करके घर का लालन-पालन करते थे। देवल सहित उनके घर में पाँच भाई है। माता-पिता अनपढ़ होने के बावजूद भी पाँचों भाईयों को पढ़ाया लिखाया। माता-पिता ने चार दशक पूर्व ही शिक्षा के महत्व को समझते हुए सभी को शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि वह चाहते तो खेतों में काम करवाकर जीवन यापन कर सकते थे। देवल का बचपन तो आनन्दगढ़ में बीता लेकिन जब वह कक्षा 1 में आए तो उनके माता-पिता ने खाजूवाला के राजकीय विद्यालय में उनका दाखिला करवाया। खाजूवाला व आनन्दगढ़ की दूरी लगभग 40 किलोमीटर की है। यहां पूर्व में एक ही बस आया व जाया करती थी। देवल बताते है कि मैं अपने बड़े भाई के साथ खाजूवाला रहकर पढ़ाई किया करता था। घर मुस्किल से 3 या 6 महीनों में जाना होता था। खाजूवाला के राजकीय विद्यालय जो कि उस समय कक्षा 5 तक थी में वह पढ़े, उसके बाद वह कक्षा 6 से से 8 वीं तक सार्दुल गंज स्कूल पढ़े, इसके बाद वह अपने बड़े भाई अमोलकदान देवल के साथ दिल्ली उच्च शिक्षा के लिए चले गए। दिल्ली में उन्होंने धनपतमल तिरमाणी सी.सै.स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वह 1998 मे राजस्थान यूनिर्वसिटी कॉमर्स कॉलेज जयपुर में आकर पढऩे लगे। वहीं सन् 2000 में स्नातकोतर एम.ए. लोक प्रशान में की उसके बाद नेट यूजीसी करके वह अपने लक्ष्य की ओर बढऩे लगे। उस समय उनके समाने आर्थिक मंदी का दौर भी आया। शिक्षा के लिए उनके पैसों की जररूत थी तब उन्होंने पार्ट टाईम काम करना भी शुरू किया। लेकिन उन्होंने अपने लक्ष्य आईएफएस को हमेशा पहले रखा। जिसकी बदौलत सन् 2003 में उनका चयन यूपीएससी आईएफएस में चयन हुआ। देवल हमेशा से ही कक्षाओं में अव्वल रहने का जूनन सवार था। वह बीकानेर में पढ़े तब कक्षा में टॉपर रहे वहीं दिल्ली में भी उन्होंने टॉप किया।

कई देश में किया भारत का प्रतिनिधित्व
देवल बताते है कि सन् 2003 में ऑल इंडिया रेंक 138 से चयन हुआ वह यूपीएचसी के इतिहास में सबसे छोटा बैच रहा है। चयन के बाद ट्रैनिंग करके उन्हे पहली नौकरी मौस्को में तीन साल सचिव पद पर रहे इसके बाद तासकंद में तीन साल द्वितीय सचिव के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद वह भारत में विदेश मंत्रालय में उपसचिव पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद वह वापस मौसको प्रथम सचिव/काऊंसलर एवं चासरी प्रमुख बनकर गए। इसके बाद उप उच्चायुक्त/डिप्टी हाई कमीशनर मौरिशियस में रहे। उसके बाद मौरिशयस में भी काम किया। इसके बाद आरर्मेनिया व जोर्जिया में भारत का राजदूत बनकर गए जो कि लगातार है। देवल नौकरी के चलते व्यस्त समय में से अपने परिवार के लिए भी निकालते है। देवल इससे पूर्व अपने परिवार से मिलने 2012-13 में आनन्दगढ़ आए थे।

देवल का युवाओं के लिए संदेश
के.डी.देवल ने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि अगर आप सरकारी सेवा व देश की सेवा में जाना चाहते हो तो लगन के साथ, धैर्य के साथ तथा एक लक्ष्य के साथ मेहनत करते है तो सफलता जरूर मिलेगी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके माता-पिता अमीर है या गरीब है। आप सरकारी स्कूल में पढ़े हो या किसी प्राईवेट में पढ़े हो आपकी सफलता सिर्फ और सिर्फ आपकी मेहनत पर निर्भर करती है। मेरी सफलता का श्रेय सिर्फ मेरे माता-पिता व गुरुजन को जाता है मेरे गुरु चतरसिंह सोढ़ा ने मुझे शिक्षा का सही महत्व बताया। पढ़ाई के लिए आपको संसाधनों की बहुत ज्यादा आवश्यकता नहीं है। आप सीमित संसाधन में भी पढ़ाई कर सकते है। युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि युवा अपने जीवन में लक्ष्य तय करें कि उन्हे आखिर बनने क्या है उनका लक्ष्य निर्धारित होने के बाद वह सिर्फ अपने लक्ष्य के लिए मेहनत करें। अगर आप तारों तक पहुंचाने का लक्ष्य बनाते है तो आप चांद तक तो अवश्य ही पहुंच जाएंगे। हमने देवल से सवाल पूछा कि जिस समय आपने शिक्षा ग्रहण की उस समय लाईट की स्थिति क्षेत्र में ठीक नहीं थी तो क्या आपके सामने ऐसी समस्या आई कि आप पढऩा चाहते हों और लाईट नहीं हो तो देवल ने बहुत सुन्दर जवाब दिया कि सबसे बड़ी लाईट सूर्य भगवान के पास है। इससे बड़ी रोशन का साधन पूरे देश में भी नहीं है। जब सुर्य उदय होता था तब मैं पढऩा शुरू करता था और जब शांय ढ़लती थी तब तक मैं मेरी पढ़ाई पूर्ण कर लेता था।