R.खबर ब्यूरो। करीब नौ माह बाद अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) से पृथ्वी पर पहुंचने में सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) और बुच विल्मोर को करीब 17 घंटे का वक्त लगा। कुछ लोगों के मन में सवाल उठा कि आमतौर पर साढ़े तीन या चार घंटे में पूरा होने वाला सफर 17 घंटे कैसे खिंच गया। पिछले वर्ष सोयुज कैप्सूल के जरिए तीन क्रू सदस्यों को धरती पर आने में साढ़े तीन घंटे ही लगे थे।
नियंत्रित गति से वापसी:-
सायुज एक सीध और तेज गति से धरती पर वापसी करता है, जिसके चलते आइएसएस से अलग होने के बाद यान की पृथ्वी के वायुमंडल में जल्द एंट्री हो जाती है, जबकि ड्रेगन अपेक्षाकृत धीमी और नियंत्रित गति से वापसी करता है। यह सीधे आने की बजाय पृथ्वी की परिक्रमा करता है और अनुकूल समय और स्थान चुनकर नीचे की ओर मुड़ता है। लैंडिंग के लिए ड्रेगन कैप्सूल को सटीक अलाइमेंट की आवश्यकता होती है। आइएसएस पृथ्वी से करीब 420 किमी ऊपर है।
वायुमंडलीय घर्षण से बचना:-
अंतरिक्ष यात्रियों को लाने वाले स्पेसक्राफ्ट की गति 28 हजार प्रति घंटे की गति समुद्र में उतरते वक्त 32 किमी प्रति घंटे ही रह जाएगी। सबसे मुश्किल और चुनौतीपूर्ण समय पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश के दौरान रहता है, इस दौरान घर्षण से बचाना बड़ी चुनौती है और स्पेसएक्स ड्रेगन की तैयारी बेहतर मानी जाती है।
‘सफल रहा मिशन’”:-
सुनीता विलियम्स की वापसी पर नासा ने स्पेसएक्स को धन्यवाद दिया। नासा ने कहा कि इस मिशन में कई चुनौतियां थी। लेकिन ये सफल रहा।
सुनीता की वापसी पर देश में जश्न:-
करीब 9 महीने बाद सुनीता विलियम्स के धरती पर लौटने के बाद भारत में जश्न का माहौल है। सुनीता के पैतृक गांव झूलासन में लोगों ने खुशी जाहिर करते हुए पटाखे फोड़े।